मंगलवार, 2 अगस्त 2011

कभी झरना , कभी बादल - सोनल रस्तोगी



सोनल रस्तोगी कहते कुछ सरसराते शब्द मेरा हाथ पकड़ लेते हैं - 'जब भी खुद को शायरा,लेखिका और बुद्धिजीवी समझती हूँ नींद खुल जाती है' और मैं हंसकर कहती हूँ -' और तब तुम कलम उठा लेती हो, है न !'
कभी झरना , कभी बादल , कभी बारिश की बूंदें , कभी प्यार का अलाव .... क्या नहीं लगती सोनल . चेहरे पर एक शरारत जो कहती है - ' ज़िन्दगी तो यूँ हीं बड़ी गंभीर हुआ करती है , अभी ज़रा मुस्कुरा लेते है ... बड़ी फुर्सत से धूप निकली है ! '
इनका ब्लॉग है - http://sonal-rastogi.blogspot.com/ जहाँ इनकी सादगी, शरारत , और गंभीरता को आसानी से समझा जा सकता है . बिना मिले समझने का इससे बेहतर जरिया और क्या होगा , और मेरी कलम से अपनी कलम की आवाज़ मिलाकर तो इस जानकारी को और सुगम बना दिया है .... कहने को तो है यूँ बहुत सी बातें , पर अभी इतना ही सही ....

चिट सामने है सोनल जी की फिर देर क्यूँ -
अपने परिचय की चिट धीरे से आप तक बढ़ा रही हूँ बिलकुल वैसे ही जसे कोई चुपके से ख़त दरवाजे के नीचे से बढ़ा जाता है , फर्रुखाबाद में जन्मी परिवार की पहली बेटी लाड ढेर सारा ,ढेर सारे रिश्तों से घिरी,बेहद बातूनी ,हद दर्जे की शैतान माँ कहती है जब तक पढ़ना नहीं आया था तबतक ,फिर किताबों में ऐसी डूबी की आज तक नशा कायम है ,लिखने की शुरुवात स्कूल में लोकगीत की तुकबन्दिया भिडाने से शुरू हुई ,फिर गांधी जयंती ,रक्तदान ,नेत्रदान ,प्रदूषण हर सामाजिक विषय पर लिखा नाटक ,एकांकी सब लिखवाया मेरी अध्यापिकाओ ने और माँ सरस्वती के आशीष नें ही आम से ख़ास महसूस करवाया , इसी दौर में बालहंस में अपनी कहानी परिचय के साथ भेजी जो बाल प्रतिभा विशेषांक में छपी,फिर क्या था खाली लिफाफे और टिकेट मिल गए खूब लिखो और भेजो मनीआर्डर की रसीदे आज तक सहेजी है अपर किताबें ना सहेज पाई ,अनमोल है ना .....
हर बार प्रोत्साहन मिला,वाद विवाद प्रतियोगिता ,नृत्य हर विधा का आनंद लिया ,खेलों में फिसड्डी थी हूँ और रहूंगी ,समय के साथ डायरी भरती गई 12th तक हर विषय पर लिखा ..लोगों के प्रेम पत्रों के लिए शायरी भी लिखी,समय बदला परिस्थितिया बदली पढ़ाई के बोझ के तले कविता कहानियाँ सब खो गई बहित बड़ा शून्य आ गया लेखन में,आगे बढना था ढेर सारी पढ़ाई, होने वाले जीवन साथी से जब मिली तो उनका मन भी एक कविता ने चुराया
"आज दिल ने चाहा बहुत अपना भी हमसफ़र होता
जिससे कहते हालात दिल के जिसके काँधे पर अपना सर होता ..... (बाकी फिर कभी )"

भावनाएं उमड़ी और दिल से फिर फूट पड़ी कविता कहानिया, फर्रुखाबाद ..लखनऊ...मेरठ ...गुडगाँव . शहर बड़े होते गए और मैं इनके साथ बदलती गई, नया रिश्ता , नया शहर और ढेर सारा आत्मविश्वास और सहयोग. बस एक देसीपन आज तक वैसा ही है .. . ब्लॉग्गिंग से परिचय मेरे देवर डा. अंकुर ने करवाया http://gubaar-e-dil.blogspot.com/ तब से जो पंख लगे आज तक उड़ रही हूँ, एक दिन रविश जी ने मेरे ब्लॉग को अपने कॉलम में जगह क्या दी तब से मेरी दुनिया बहुत बड़ी हो गई और प्यारी भी , रचनाओ को पाठक मिले और मुझे पढने के लिए ढेर सारी सामग्री, सच में यहाँ मैं सिर्फ मैं हूँ बेहद सुकून मिलता है.
अभी तो घुटुनो के बल हूँ ,धीरे-धीरे चलूंगी पर दौड़ना नहीं है मुझे, ज़िन्दगी स्लो मोशन में ही भाती है सब देखना है मुझे .
क्या पता किसी दिन ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ ...

25 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूबसूरत परिचयात्मक प्रस्तुति, बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति .

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  2. क्या पता किसी दिन ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ ..... बस यही हौसला रहना चाहिए ... आपकी रचनाएँ हमेशा आकर्षित करती हैं ...

    रश्मि जी का आभार यहाँ परिचय देने के लिए

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  3. mujhe to aapke chehre ki hansi aur julfon par saje goggles door se bata dete hain ki aap aa rahi hain. aaj apko kareeb se bhi jan liya.

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  4. ब्लॉग से अखबार और किताब तक का सफ़र जल्द पूर्ण हो ...
    शुभकामनायें !

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  5. सोनल जी की हर इच्‍छा पूरी हो यही कामना है1

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  6. परिचय की इस श्रृंखला में सोनल जी को जानना अच्‍छा लगा...जिनके साथ सादगी भी है और शरारत के साथ जुड़ी अभिलाषाएं भी...ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ ... जिनके लिये उन्‍हें ढेर सारी शुभकामनाएं और आपका आभार ।

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  7. सोनल जी को जानना अच्‍छा लगा... धन्यवाद..

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  8. सोनल जी की किताब का इंतज़ार रहेगा, शुभकामना।

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  9. सोनल जी को आपकी कलम से पढना सुखद रहा

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  10. बहुत अच्छा रहा सोनल जी को जानना...
    उन्हें बधाई और सादर शुभकामनाएं....

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  11. सोनल जी का पूरा परिचय मिला हार्दिक आभार्।

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  12. सोनल की रचनाएं,हमेशा ही मन लुभाती हैं...आज यहाँ उन्हें और अच्छी तरह जानने का मौका मिला..

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  13. सोनल की मुस्कान की ही तरह रचनाएँ और टिप्पणियाँ भी मन मोह लेती हैं...टिप्पणी नहीं कर पाते यह अलग बात है :):)आपकी क़लम से परिचय पाकर और भी अच्छा लगा.

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  14. मेरा परिचय तो बड़ा अनोखा है इनसे.. चैट पर मिलीं. तो हाल पूछ बैठीं.. बताया हाथ की बीमारी से परेशान हूँ.. तुरत मेरा नंबर लिया और बोलीं, चैट बंद कर दीजिए, फोन करती हूँ.. और पल भर में उनकी मीठी आवाज़ "हैलो!"
    इतना समवेदनशील और ममतामयी व्यक्तित्व... बस वो दिन और आज का दिन... मेरी प्रिय हैं!! अपनी रचनाओं के कारण भी और व्यक्तित्व के कारण भी!!

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  15. सोनल जी से परिचय कराने के लिए आभार.
    सादर,
    डोरोथी.

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  16. सोनल को जितना फ़ेसबुक और ब्लाग के माध्यम से जाना .. सोचती थी कि वो ऐसी ही होंगी... शुभकामनायें !

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  17. खूबसूरत परिचयात्मक प्रस्तुति.आभार.

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  18. जरुर सपने देखिये तभी तो वे पुरे होंगे जल्दीही अखबार ...और किताब तक पहुचेंगी एसी कामना करती हूँ

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  19. इनका परिचय तो बहुत अपना सा लगता है |

    अपनी आदत में कहीं मेरा भी अक्स पाओगे ,
    तुम कुछ कुछ मेरे जैसे हो | :)

    सादर

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  20. "क्या पता किसी दिन ब्लॉग से अखबार और अखबार से किताब की शक्ल ले लूँ "
    ....आप वाकई बहुत अच्छा लिखती हैं सोनाल्जी ...और आपके सभी पाठकों और चाहने वालों कि शुभकामनाएं आपके साथ हैं .......आपकी किताब ज़रूर छपेगी ...:)

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